ओ मेरी झील
मैं वक्त के साथ घूमता रहा
दुनिया की हसीन वादियों में और तुम
उदास होती गईं भोपाल में रहते रहते
तुम सिकुड़ती गईं संकोच में
मैंने एक शहर बन कर
तुम्हारे आँचल में घर बनाया
अपनी छत से तुम्हें सूखते देखा
तुम्हें उदास होते देखा
ओ झील लहराओ
तुम्हारे लहराने से लहराएगा मेरा शहर
लहराएँगे पंक्षी लहराएँगे पार्क
ओ झील अपने किनारों
मेरे और मेरे शहर के अपराध माफ करना
मैं तुम्हारे किनारों का साथी हूँ
मैं तुम्हारा कवि हूँ